प्रथमपूज्य प्रभु श्रीगणेशजी, विद्यादात्री भगवती सरस्वती माता एवं अपने कुलदेव-कुलदेवी, इष्टदेव और सद्गुरुदेव को सुमीर, प्रभु के लिए भक्ति के विचारों का प्रकाशन यहाँ किया जा रहा है ।
जैसा कि मैंने प्रभु की भक्ति के लिए श्रीग्रंथों में पढ़ा, ऋषियों की लेखनी में पढ़ा, भक्तों के चरित्र में पढ़ा और संतों की वाणी से सुना उसका संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
मानव जीवन का सच्चा उद्देश्य प्रभु की प्राप्ति ही है और इसके लिए भक्ति के अलावा अन्य कोई विकल्प ही नहीं है ।
प्रभु भक्ति में चार बातें अहम हैं । पहला, प्रभु की निष्काम भक्ति हो । दूसरा, एकमात्र प्रभु से ही प्रेम हो । तीसरा, अपना पूर्ण आत्मनिवेदन प्रभु को हो । चौथा, प्रभु की पूर्ण रूप से शरणागति हो ।
जीवन में प्रतिकूलता निर्माण होने पर उसे प्रभु की तरफ मुड़ने का प्रभु द्वारा भेजा अवसर मानना चाहिए और उसमें प्रभु की असीम कृपा देखनी चाहिए । मेरे जीवन में मेरे प्रभु की कृपा को मैं कहाँ तक गिनाऊँ, कहाँ तक दिखाऊँ और कहाँ तक बताऊँ । एक उदाहरण ही पर्याप्त है ।
मेरे सांसारिक माता-पिता के इलाज में रुपया पानी की तरह बहा फिर भी उन्हें आरोग्यता नहीं मिली और बीमारी से उनका देहांत हुआ । विज्ञान, धनबल और कुटुंबबल मेरी आँखों के सामने कुछ भी नहीं कर पाया । मुझे तब पता चला कि प्रभु ही सर्वोपरि हैं और हमारी क्षमताएं कुछ भी नहीं है ।
ज्यादा से ज्यादा संसार में जो मिल सकता है वह सुख है और प्रभु भक्ति जो देती है वह परमानंद है । सांसारिक सुख तो पहली सीढ़ी है जिसका शिखर परमानंद है जो केवल और केवल प्रभु भक्ति से ही मिल सकता है ।
हमारा उद्धार, हमारा कल्याण और जन्म-मृत्यु के चक्र से सदैव के लिए हमारी मुक्ति केवल भक्ति से ही संभव है ।
हमारे शास्त्रों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से भी बड़ा पुरुषार्थ भक्ति को बताया है । यहाँ तक कि मोक्ष यानी मुक्ति को भी भक्ति की दासी माना गया है ।
भक्तिविचार के हर अध्याय में आठ सौ भक्ति के विचार प्रकाशित मिलेंगे । आप भक्तिविचार लिंक को क्लिक करके यह भक्ति के विचार पढ़ सकते हैं । जो श्रद्धालु पहली बार हमसे जुड़ रहे हैं वे प्रभु से जोड़ने वाले भक्तिविचार रोजाना सुबह व्हाट्सएप पर पाने के लिए हमारा नंबर +91 9462308471 को अपने फोन में सेव करके "SHREEHARI-Number saved" लिखकर हमें व्हाट्सएप करें जिससे अगले दिन से उन्हें भी रोजाना भक्तिविचार मिलना आरंभ हो जाए ।
सभी के हृदय में प्रभु की भक्ति का जागरण हो, इसी दिशा में किया यह प्रयास एक विवेकशून्य सेवक द्वारा प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित,